(नागपत्री एक रहस्य-11)

अपने चंचल मन की स्थिति में परिवर्तन देख राम भजन (ग्वाला) खुद ही आश्चर्यचकित था, उसे ऐसा लग रहा था, मानो किसी ने उसे ऐसे मिट्टी में झोंक दिया हो, जहां उसके सभी पाप, दुष्कर्म बुरे विचार और मन की चंचलता जलकर भस्म होते जा रही हो। 

                             वह सिर्फ आंखें बंद किए हुए यह अनुभव किया जा रहा था, कि आसपास की तेज प्रकाश की किरणें उसके मन के भीतर तक बिना किसी अवरोध के प्रवेश कर रही थी, वह अपने आप को इतना हल्का महसूस कर रहा था ,जैसे कोई गुलाब की पंखुड़ी से भी कम उसे अपने शरीर और आत्मा में कोई भी अंतर जान नहीं पड रहा था। 





ऐसा लग रहा था, मानो शरीर सुन्न हो कर सिर्फ और सिर्फ आत्मा के मार्गदर्शन पर निढाल होकर पड़ा है, सिर्फ पंचतत्वों का शरीर अनुभव करने के काम आ रहा है, इसके अतिरिक्त कुछ भी नहीं।
                आज तक सिर्फ चमत्कारों को राम भजन ने सिर्फ कहानी किताबों में पढ़ा और लोगों से सुना ही मात्र था, लेकिन वह बिल्कुल भी चमत्कार नाम की चिड़िया को सिरे से दरकिनार करता रहा। 




उसने यहां तक कि दूसरे गांव में रहने के पश्चात एक दफा भी गांव के प्रमुख द्वार पर स्थित नागराज को कभी प्रणाम तक नहीं किया, यहां तक कि जब समूह के साथ आता तो उसके सभी साथी मंदिर में ठहर कर पूजा अर्चना करते, और राम भजन वहां पास ही बैठ दरवाजे पर आसपास की खूबसूरती को निहारता रहता। 
          लेकिन कभी भी उसने उस मंदिर में प्रवेश नहीं किया, शायद इसका मूल कारण उसके मन में द्वेष की भावना थी, क्योंकि उसका परिवार एक विस्थापित परिवार था,




इसके पूर्व उसका परिवार पास के ही एक गांव में रहते थे, और उसके पिता का व्यवसाय जंगल से लकड़ी काटकर लाना, और उसे घरेलू कामकाज की चीजें बनाकर बेचना था,
                राम भजन भी अपने पिता के साथ अक्सर जंगल जाया करता था, लेकिन एक दिन उसके पिता को किसी कारणवश अकेले जाना पड़ा, और उसी दिन गांव वाले के कहे अनुसार एक सर्पदंश से उसके पिता की मृत्यु हो गई। 




उस समय राम भजन महज आठ साल की उम्र का था, इतनी कम उम्र में अपने पिता का साया छोड़ना वह बर्दाश्त ना कर सका, और गुमसुम सा रहने लगा, क्योंकि उस दूर बसे गांव में भी सर्पदंश की घटना होना एक बड़े आश्चर्य की बात थी , इसलिए लोगों ने अनगिनत कहानियां और दोष उसके परिवार को देना प्रारंभ किया।
                जिसमें खुद उनके रिश्तेदारों ने बड़ी ही अहम भूमिका निभाई, इस दौरान परिवार वालों का व्यवहार अपनी बहन के प्रति बदलता देख उसके मामा शीतल दास जी बर्दाश्त ना कर सके, और अपनी बहन को लेकर यहां आ गए, तब से उसका परिवार इसी गांव में रहता है।




लेकिन राम भजन आज भी अपने पिता की मृत्यु के लिए नाग प्रजाति को दोषी मानता था, इसलिए वह नाग प्रजाति के लिए सम्मान भाव बिल्कुल भी नहीं रखता था, लेकिन जब से वह इस पेड़ पर चढ़ा तब से जैसे उसकी सारी मन की स्थिति बदलते नजर आ रही है। 
             अब उसके मन में भक्ति भाव मानो अपने आप ही उत्पन्न हो रहा है, वह साफ स्पष्ट तौर पर देख पा रहा था अपने अंदर यह परिवर्तन, लेकिन क्यों और कैसे???? यह पता नहीं???



बस प्रकाश ही प्रकाश चारों ओर एक अद्भुत शक्ति का संचार, मन के भीतर जो संपूर्ण विकारों को जलाकर नष्ट कर रहा था, वो आंखें बंद कर अपने आप को उस कमलानुमा तिजोरी में बंद होने के पश्चात भी अपने आसपास होने वाली घटना हुआ अनुभव कर रहा था।
                  इस पर्वत की सकारात्मक ऊर्जा ने उसे पहले ही अपनी नकारात्मक सोच और अनुभूति से आजाद कर दिया, और बची कुची कमी सफेद पलशे के वृक्ष की शरण में आने पर वह भी पूरी हो गई।




क्या पुण्य किए होंगे मैंने , जो मुझे ऐसी आत्मशांति प्राप्त हुई, जिसकी तलाश में तपस्या करते हुए जाने कितने ही युग यूं ही बीत जाते है, फिर भला मैंने आज तक तो सिर्फ और सिर्फ नाग शक्ति का अपमान ही किया। 
           आखिर क्यों मुझ पर इतनी कृपा हो गई, क्यों मुझे परमसुख का हकदार बनाया गया????



वह इतना सोच रहा था कि अचानक वहां की रोशनी दोगुनी हो गई, और देखते ही देखते वह उसमें खोने लगा, जैसे अब उसका कोई अस्तित्व ही शेष ना रहा हो।
              मंत्रमुग्ध कर देने वाले श्लोक और मंत्रों का उच्चारण जो भले ही उसकी समझ से परे हो, लेकिन अन्तर्मन की शक्ति को पूर्ण रूपेण जाग्रत करने में सक्षम थे।



इन मंत्रों की ध्वनि कान में पढ़ते ही जैसे आत्मा स्वयं की अपने शरीर को छोड़कर परमात्मा में लीन हो जाए, इतनी शक्ति और सामर्थ्य था उसमें ,
राम भजन इस वातावरण में डूबता ही जा रहा था, कि तभी अचानक पांच अनोखे गुप्त दरवाजे प्रकट हुए, जिसका विवरण आज तक कभी भी उसने किसी के भी मुंह से ना सुना था और ना देखा था।



उन पांचों दरवाजों से निकलने वाली नीली रोशनी अत्यंत ही लुभावनी थीं , वह वृक्ष किसी जीवंत में ही मनुष्य की तरह जैसे राम भजन को हृदय में ले, उन दरवाजों के निकट जा खड़ा हुआ।
          राम भजन जैसे आप अपनी नहीं उस वृक्ष की आंखों से आसपास की हर चीज को देख रहा था, उसने देखा असंख्य चमत्कारी पेड़, औषधि वाले वृक्ष, वृहद और विस्तृत लताएं, चमकती हुई लताएं, सुंदरियों का रूप ले जैसे देवताओं को रिझाने के लिए खड़ी हुई है। 




उत्तम पशु पक्षी और ना जाने कौन सी प्रजातियां, कीट पतंगे इत्यादि सभी जैसे पंक्तिमय होकर उन दरवाजों से उस मंदिर के भीतर प्रवेश कर रहे हैं, दरवाजे में प्रवेश करने के बाद माहौल जैसे सोच और समझ से भी परे था। 
             इतनी तेज रोशनी जैसे सब कुछ उस रोशनी में ढक गया हो,  हर कोई दरवाजे से प्रवेश के पश्चात जिस जगह पर पहुंचता उसी जगह का हो जाता,  फिर भी आने वाले प्रत्येक जीव और जीवात्मा को स्थान कम ना पड़ता, 


राम भजन को वहां का माहौल बहुत ही शांत और खुशनुमा सा लग रहा था, जैसे वह उसमें रमते जा रहा हो, वह मन ही मन आनंदित और प्रफुल्लित हुए जा रहा था।
यह सब माहौल देखकर राम भजन के मन में और क्या क्या भाव उत्पन्न हो रहे थे?????

क्रमशः ....

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1 Comments

Babita patel

15-Aug-2023 01:57 PM

Nice

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